बात तुम्हारे पास पहुँच कर,
क्यों सन्नाटा कर देती है,
प्यार तुम्हारे पास पहुँच कर,
क्यों आँसू में घुल जाता है,
दृष्टि तुम्हारी मिल जाने पर,
क्यों खलबली सी मच जाती है,
हाथ तुम्हारा मिल जाने पर ,
क्यों हौसला बँध जाता है,
मुस्कान तुम्हारी दिख जाने पर,
क्यों समाधान आ जाता है,
रूप तुम्हारा सज जाने पर,
क्यों भावना टिक जाती है,
धूप गुनगुनी खिल जाने पर,
क्यों ताजगी आ जाती है,
बात मेरे पास पहुँच कर,
क्यों मिठास सी बन जाती है ।
------
मंगलवार, 25 अक्टूबर 2011
बात तुम्हारे पास पहुँच कर
बात तुम्हारे पास पहुँच कर,
क्यों सन्नाटा कर देती है,
प्यार तुम्हारे पास पहुँच कर,
क्यों आँसू में घुल जाता है,
दृष्टि तुम्हारी मिल जाने पर,
क्यों खलबली सी मच जाती है,
हाथ तुम्हारा मिल जाने पर ,
क्यों हौसला बँध जाता है,
मुस्कान तुम्हारी दिख जाने पर,
क्यों समाधान आ जाता है,
रूप तुम्हारा सज जाने पर,
क्यों भावना टिक जाती है,
धूप गुनगुनी खिल जाने पर,
क्यों ताजगी आ जाती है,
बात मेरे पास पहुँच कर,
क्यों मिठास सी बन जाती है ।
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क्यों सन्नाटा कर देती है,
प्यार तुम्हारे पास पहुँच कर,
क्यों आँसू में घुल जाता है,
दृष्टि तुम्हारी मिल जाने पर,
क्यों खलबली सी मच जाती है,
हाथ तुम्हारा मिल जाने पर ,
क्यों हौसला बँध जाता है,
मुस्कान तुम्हारी दिख जाने पर,
क्यों समाधान आ जाता है,
रूप तुम्हारा सज जाने पर,
क्यों भावना टिक जाती है,
धूप गुनगुनी खिल जाने पर,
क्यों ताजगी आ जाती है,
बात मेरे पास पहुँच कर,
क्यों मिठास सी बन जाती है ।
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मंगलवार, 20 सितंबर 2011
कविता: ईश्वर बहुत साधारण होता है ।
कविता: ईश्वर बहुत साधारण होता है ।: ईश्वर बहुत साधारण होता है, जब चाहो उसे बुला लो, जब चाहो उसे भूल जाओ, मन डरता हो, घबराता हो, वह स्वयं ही प्रतिष्ठापित हो जायेगा, बिना स...
कविता: ईश्वर बहुत साधारण होता है ।
कविता: ईश्वर बहुत साधारण होता है ।: ईश्वर बहुत साधारण होता है, जब चाहो उसे बुला लो, जब चाहो उसे भूल जाओ, मन डरता हो, घबराता हो, वह स्वयं ही प्रतिष्ठापित हो जायेगा, बिना स...
कविता: ईश्वर बहुत साधारण होता है ।
कविता: ईश्वर बहुत साधारण होता है ।: ईश्वर बहुत साधारण होता है, जब चाहो उसे बुला लो, जब चाहो उसे भूल जाओ, मन डरता हो, घबराता हो, वह स्वयं ही प्रतिष्ठापित हो जायेगा, बिना स...
कविता: ईश्वर बहुत साधारण होता है ।
कविता: ईश्वर बहुत साधारण होता है ।: ईश्वर बहुत साधारण होता है, जब चाहो उसे बुला लो, जब चाहो उसे भूल जाओ, मन डरता हो, घबराता हो, वह स्वयं ही प्रतिष्ठापित हो जायेगा, बिना स...
सोमवार, 19 सितंबर 2011
ईश्वर बहुत साधारण होता है ।
ईश्वर बहुत साधारण होता है,
जब चाहो उसे बुला लो,
जब चाहो उसे भूल जाओ,
मन डरता हो,
घबराता हो,
वह स्वयं ही प्रतिष्ठापित हो जायेगा,
बिना सुरक्षा
सब जगह पहुँच जायेगा,
किसी के साथ बैठ लेगा,
किसी के साथ चल देगा,
शुभ कार्यों के लिए
घर-घर सज जायेगा,
ईश्वर बहुत आम होता है,
कहीं भी बैठ जायेगा,
कहीं भी श्वास ले लेगा,
ईश्वर बहुत साधारण होता है ।
*******
महेश रौतेला
जब चाहो उसे बुला लो,
जब चाहो उसे भूल जाओ,
मन डरता हो,
घबराता हो,
वह स्वयं ही प्रतिष्ठापित हो जायेगा,
बिना सुरक्षा
सब जगह पहुँच जायेगा,
किसी के साथ बैठ लेगा,
किसी के साथ चल देगा,
शुभ कार्यों के लिए
घर-घर सज जायेगा,
ईश्वर बहुत आम होता है,
कहीं भी बैठ जायेगा,
कहीं भी श्वास ले लेगा,
ईश्वर बहुत साधारण होता है ।
*******
महेश रौतेला
सोमवार, 12 सितंबर 2011
हम कहते रहेंगे
हम कहते रहेंगे-
अपनी शुद्धता
प्रेषित करते रहेंगे,
सत्यता जो
आदि से अन्त तक
निकलती-डूबती
आशा-आकांक्षों में
उभरती-ढहती
उसे गुनगुनाते रहेंगे ।
प्यार को
जो चाहिए
उसे देते जाएंगे,
हम पगडण्डियों की बातों को
ऊँचाई तक ले जाएंगे,
अपने होने के एहसास को
मोक्ष तक घुमाएंगे,
हम मिट्टी बन
फिर मिट्टी पर
उग आएंगे ।
******
अपनी शुद्धता
प्रेषित करते रहेंगे,
सत्यता जो
आदि से अन्त तक
निकलती-डूबती
आशा-आकांक्षों में
उभरती-ढहती
उसे गुनगुनाते रहेंगे ।
प्यार को
जो चाहिए
उसे देते जाएंगे,
हम पगडण्डियों की बातों को
ऊँचाई तक ले जाएंगे,
अपने होने के एहसास को
मोक्ष तक घुमाएंगे,
हम मिट्टी बन
फिर मिट्टी पर
उग आएंगे ।
******
शनिवार, 27 अगस्त 2011
कविता: आन्दोलन
कविता: आन्दोलन: आन्दोलन फिर उभरा भ्रष्टाचार के विरूद्ध राष्ट्र की जनता द्वारा राष्ट्र के लिए एक नारा फिर गाया गया । गुम भारत बाहर निकला, एक गीत मं...
कविता: पता नहीं
कविता: पता नहीं: पता नहीं, गरीब इस मँहगाई के साथ कैसे चलता होगा, कैसे हँसता होगा, कैसे रिश्ते निभाता होगा, कैसे उजाला देखता होगा, कैसे समय को पूछता ह...
पता नहीं
पता नहीं,
गरीब
इस मँहगाई के साथ
कैसे चलता होगा,
कैसे हँसता होगा,
कैसे रिश्ते निभाता होगा,
कैसे उजाला देखता होगा,
कैसे समय को पूछता होगा,
कितने आँसू बहाता होगा,
कितनी आह भरता होगा,
कितनी बार टूट कर
उठता होगा,
कब-कब भूख को सुलाता होगा,
पता नहीं,
गरीब
इस भ्रष्टाचार के साथ
कैसे मुस्कराता होगा ।
********
आन्दोलन
आन्दोलन
फिर उभरा
भ्रष्टाचार के विरूद्ध
राष्ट्र की जनता द्वारा
राष्ट्र के लिए
एक नारा
फिर गाया गया ।
गुम भारत
बाहर निकला,
एक गीत
मंच तक हो आया,
अवरोधों को हटाने,
राहों को खोलने,
एक आन्दोलन
फिर गुनगुनाने लगा ।
झंडे
भ्रष्टाचार के विरूद्ध
उठने लगे ।
------------
फिर उभरा
भ्रष्टाचार के विरूद्ध
राष्ट्र की जनता द्वारा
राष्ट्र के लिए
एक नारा
फिर गाया गया ।
गुम भारत
बाहर निकला,
एक गीत
मंच तक हो आया,
अवरोधों को हटाने,
राहों को खोलने,
एक आन्दोलन
फिर गुनगुनाने लगा ।
झंडे
भ्रष्टाचार के विरूद्ध
उठने लगे ।
------------
शुक्रवार, 26 अगस्त 2011
कविता: भारत की भाषा
कविता: भारत की भाषा: वह नहीं बोलता, भारत की भाषा कोटि-कोटि हृतंत्री लय एकतंत्रीय,अहं से लथपथ खड़े उसके जीवन खंडहर हृदय में कृमि, कंकण, काट रहे ज्योति जिह्...
कविता: भारत की भाषा
कविता: भारत की भाषा: वह नहीं बोलता, भारत की भाषा कोटि-कोटि हृतंत्री लय एकतंत्रीय,अहं से लथपथ खड़े उसके जीवन खंडहर हृदय में कृमि, कंकण, काट रहे ज्योति जिह्...
कविता: भारत की भाषा
कविता: भारत की भाषा: वह नहीं बोलता, भारत की भाषा कोटि-कोटि हृतंत्री लय एकतंत्रीय,अहं से लथपथ खड़े उसके जीवन खंडहर हृदय में कृमि, कंकण, काट रहे ज्योति जिह्...
भारत की भाषा
वह नहीं बोलता,
भारत की भाषा
कोटि-कोटि हृतंत्री लय
एकतंत्रीय,अहं से लथपथ
खड़े उसके जीवन खंडहर
हृदय में कृमि, कंकण,
काट रहे ज्योति जिह्वा
वह अकेला जनता ने पाला ।
उदारता कोटि-कोटि जन मन की
क्यों करती उसकी अहं तुष्टि ?
जब वह नहीं समझता,
भारत की भाषा
वह नहीं जानता
भारत की संस्कृति चिरंतन
शोषण के डंक मारता,
रख क्षुद्र आकांक्षा
जनमन से हटकर
वृथा अभिमान की सत्ता रख,
वह नहीं बोलता,
भारत की भाषा
माँ के हृदय में ममता
वह डंक मारता,
भारत माँ ने गरल ले लिया
भारत की जनता बोलेगी,
भारत की भाषा ।
*******
शनिवार, 20 अगस्त 2011
कविता: जनता
कविता: जनता: जनता ने बनाया जनता ही उतारेगी, लोकतंत्र के आँसुओं को जनता ही पोछेगी, सिंहासन की शुद्धता जनता ही पूछेगी, परिवर्तन की बातें भी जनता ही ...
कविता: जनता
कविता: जनता: जनता ने बनाया जनता ही उतारेगी, लोकतंत्र के आँसुओं को जनता ही पोछेगी, सिंहासन की शुद्धता जनता ही पूछेगी, परिवर्तन की बातें भी जनता ही ...
जनता
जनता ने बनाया
जनता ही उतारेगी,
लोकतंत्र के आँसुओं को
जनता ही पोछेगी,
सिंहासन की शुद्धता
जनता ही पूछेगी,
परिवर्तन की बातें भी
जनता ही करेगी,
क्रान्ति के बीजों को
जनता ही जगायेगी,
सूक्ष्म जो सत्य है
उसे जनता ही बचायेगी ,
आस्थायें अन्त में
जनता पर उतरेंगी ।
----
जनता ही उतारेगी,
लोकतंत्र के आँसुओं को
जनता ही पोछेगी,
सिंहासन की शुद्धता
जनता ही पूछेगी,
परिवर्तन की बातें भी
जनता ही करेगी,
क्रान्ति के बीजों को
जनता ही जगायेगी,
सूक्ष्म जो सत्य है
उसे जनता ही बचायेगी ,
आस्थायें अन्त में
जनता पर उतरेंगी ।
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गुरुवार, 28 जुलाई 2011
जल-संतुलन
पीने के पानी की उपलब्धता 1 प्रतिशत से भी कम है । 2025 तक 48 देशों में 2.8 अरब मे अधिक लोग ,संसार की 35% अनुमानित जनसंख्या, पानी की कमी से जूझेगी । भारत की 14 मुख्य नदियां बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी हैं । वे 5 करोड़ घन मीटर गंदा पानी प्रति वर्ष समुद्र में फेंकती हैं । 19 शहरों में पानी की कमी है । पानी का प्रयोग सतत बढ़ रहा है । अभी संसार के 6 अरब लोग नदियों,झीलों और भूमिगत उपलब्ध पानी का 54 प्रतिशत प्रयोग करते हैं । संसार की 80 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या भूमिगत जल पर निर्भर करती है । भूमिगत जल पर बढ़ती आबादी, शहरीकरण, औद्योगिकरण और खाद्य सुरक्षा की माँग के कारण बहुत दबाव है । भूमिगत जल का अतिशय दोहन और प्राकृतिक रूप से उसकी भरपाई न होने के कारण इस स्रोत का उपयोग तकनीकी और आर्थिक रूप से सतत सम्भव नहीं होगा । संसार के किसानों द्वारा पम्पिंग से निकाले गये लगभग 160 अरब घन मीटर पानी की प्रतिवर्ष प्राकृतिक रूप से भरपाई नहीं होती है । इसलिए हमें प्रदूषण निवारण और भूमिगत दोहन से निकाले गये पानी की भरपाई करने का प्रयत्न करना चाहिए। इससे हम प्राकृतिक आपदाओं से भी बच पाएंगे ।
रविवार, 24 जुलाई 2011
कविता: कुछ कहूँगा तो
कविता: कुछ कहूँगा तो: "कुछ कहूँगा तो कुछ हो जायेगा अत: चुप रहता हूँ, मौन में तीर्थ बना तुम्हें बुलाता हूँ । आदमी तहलका मचाता है, सारी अँगड़ाइयां यहीं ले ले..."
कविता: कुछ कहूँगा तो
कविता: कुछ कहूँगा तो: "कुछ कहूँगा तो कुछ हो जायेगा अत: चुप रहता हूँ, मौन में तीर्थ बना तुम्हें बुलाता हूँ । आदमी तहलका मचाता है, सारी अँगड़ाइयां यहीं ले ले..."
कुछ कहूँगा तो
कुछ कहूँगा
तो कुछ हो जायेगा
अत: चुप रहता हूँ,
मौन में
तीर्थ बना
तुम्हें बुलाता हूँ ।
आदमी तहलका मचाता है,
सारी अँगड़ाइयां
यहीं ले लेता है ।
मैं हूँ कि
कुछ कहूँगा
और प्यार हो जायेगा,
हमारी आजादी से
एक गीत बन जायेगा ।
-----------
तो कुछ हो जायेगा
अत: चुप रहता हूँ,
मौन में
तीर्थ बना
तुम्हें बुलाता हूँ ।
आदमी तहलका मचाता है,
सारी अँगड़ाइयां
यहीं ले लेता है ।
मैं हूँ कि
कुछ कहूँगा
और प्यार हो जायेगा,
हमारी आजादी से
एक गीत बन जायेगा ।
-----------
मंगलवार, 12 जुलाई 2011
आदमी
आदमी कितना भी
दुखी हो
ईश्वर से दुश्मनी
नहीं कर पाता,
उसे जीवनपर्यन्त
पूजता,
अपनी भलाई की
शपथ ले,
अपने दुरावों को
इधर-उधर दौड़ाता है ।
----------
दुखी हो
ईश्वर से दुश्मनी
नहीं कर पाता,
उसे जीवनपर्यन्त
पूजता,
अपनी भलाई की
शपथ ले,
अपने दुरावों को
इधर-उधर दौड़ाता है ।
----------
बुधवार, 6 जुलाई 2011
कविता: हे कृष्ण
कविता: हे कृष्ण: "हे कृष्ण, कहाँ जाउँ, किसे कहूँ, दुविधाओं में, किस गीता को पढ़ूँ, किस गीत को गाऊँ, किस पाठ को दोहराऊँ, कर्म की शैली, कैसे बदलूँ, धर्..."
कविता: हे कृष्ण
कविता: हे कृष्ण: "हे कृष्ण, कहाँ जाउँ, किसे कहूँ, दुविधाओं में, किस गीता को पढ़ूँ, किस गीत को गाऊँ, किस पाठ को दोहराऊँ, कर्म की शैली, कैसे बदलूँ, धर्..."
हे कृष्ण
हे कृष्ण,
कहाँ जाउँ,
किसे कहूँ,
दुविधाओं में,
किस गीता को पढ़ूँ,
किस गीत को गाऊँ,
किस पाठ को दोहराऊँ,
कर्म की शैली,
कैसे बदलूँ,
धर्म संकट में,
किस कुरूक्षेत्र में जाऊँ ।
कहाँ जाउँ,
किसे कहूँ,
दुविधाओं में,
किस गीता को पढ़ूँ,
किस गीत को गाऊँ,
किस पाठ को दोहराऊँ,
कर्म की शैली,
कैसे बदलूँ,
धर्म संकट में,
किस कुरूक्षेत्र में जाऊँ ।
शुक्रवार, 1 जुलाई 2011
अभी लिखी नहीं गयी चिट्ठी
अभी लिखी नहीं गयी चिट्ठी
प्यार की,
कहा नहीं गया शब्द
मिठास का,
हुई नहीं बात
स्नेह की ।
अभी फूटे नहीं स्रोत
सत्य के ,
अभी सम्भावना है
प्यार की, मिठास की,
स्नेह की, सत्य की ।
** महेश रौतेला
प्यार की,
कहा नहीं गया शब्द
मिठास का,
हुई नहीं बात
स्नेह की ।
अभी फूटे नहीं स्रोत
सत्य के ,
अभी सम्भावना है
प्यार की, मिठास की,
स्नेह की, सत्य की ।
** महेश रौतेला
मंगलवार, 14 जून 2011
कविता: ओ वसंत
कविता: ओ वसंत: " ओ वसंत ओ वसंत मैं फूल बन जाउँ सुगंध के लिए , ओ आसमान मैं नक्षत्र बन जाउँ टिमटिम..."
ओ वसंत
ओ वसंत
ओ वसंत
मैं फूल बन जाउँ
सुगंध के लिए ,
ओ आसमान
मैं नक्षत्र बन जाउँ
टिमटिमाने के लिए,
ओ शिशिर
मैं बर्फ बन जाउँ
दिन-रात चमकने का लिए,
ओ पृथ्वी
मैं राह बन जाउँ
शाश्वत चलने के लिए,
ओ समुद्न
मैं लहर बन जाउँ
थपेड़ों में बदलने के लिए ,
ओ हवा
मैं शुद्ध बन जाउँ
जीवन का लिए ,
ओ सत्य
मैं दिव्य बन जाउँ
शाश्वत होने के लिए ,
ओ स्नेह
मैं रूक जाउँ
साथ-साथ टहलने के लिए ।
................
यह भारत है
यह बिहू है
जो मुझे भाता है
सुबह सी अनुभूति दे
ब्रह्मपुत्र का आभास कराता है ।
ये झोड़े हैं
जो मुझे नचाते हैं
स्नेह सा स्पर्श दे
गंगा का ज्ञान दे जाते हैं ।
यह गरबा है
जो मुझ में सनसनाता है
अद्भुत लय दे
साबरमती तक ले आता है ।
यह भारत है
जो मुझे उज्जवल बनाता है
गंगा,यमुना,ब्रह्मपुत्र
नर्मदा,गोदावरी,कावेरी
सिन्धु,व्यास, रावी
सबका संगम मुझमें ढूढ़ंता है ।
......
भवदीय
महेश रौतेला
फोन 09435718178
रविवार, 12 जून 2011
कविता: गुनगुनाने के लिए मैं गीत हूँ
कविता: गुनगुनाने के लिए मैं गीत हूँ:
"गुनगुनाने के लिए मैं गीत हूँ,
स्नेह से पुकार लो मैं शब्द हूँ,
सुबह को उघाड़ लो मैं ताजगी हूँ,
प्यार से जान लो म..."
"गुनगुनाने के लिए मैं गीत हूँ,
स्नेह से पुकार लो मैं शब्द हूँ,
सुबह को उघाड़ लो मैं ताजगी हूँ,
प्यार से जान लो म..."
शनिवार, 11 जून 2011
गुनगुनाने के लिए मैं गीत हूँ
गुनगुनाने के लिए मैं गीत हूँ
गुनगुनाने के लिए मैं गीत हूँ,
स्नेह से पुकार लो मैं शब्द हूँ,
सुबह को उघाड़ लो मैं ताजगी हूँ,
प्यार से जान लो मैं स्पर्श हूँ,
गुनगुनाने के लिए मैं प्रीति हूँ,
आँख से देख लो मैँ दृष्टि हूँ,
शाम को पहिचान लो मैं विश्राम हूँ,
आवाज मेरी सुन सको मैं सच्च हूँ,
साथ-साथ चल सको मैं अनुभूति हूँ,
यदा-कदा मिल सको तो मित्र हूँ,
प्यार से जान लो तो अनन्त हूँ,
सौन्दर्य को कह सको तो सुखान्त हूँ,
प्यार से बढ़ सको तो मैं चुनाव हूँ,
तीर्थ में रह सको तो मैं पुण्य हूँ,
यहीं-कहीं रूक सको तो इन्तजार हूँ,
बात को स्वीकार लो तो सत्य हूँ ।
*****
**महेश रौतेला
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