शनिवार, 27 अगस्त 2011

कविता: आन्दोलन

कविता: आन्दोलन: आन्दोलन फिर उभरा भ्रष्टाचार के विरूद्ध राष्ट्र की जनता द्वारा राष्ट्र के लिए एक नारा फिर गाया गया । गुम भारत बाहर निकला, एक गीत मं...

कविता: पता नहीं

कविता: पता नहीं: पता नहीं, गरीब इस मँहगाई के साथ कैसे चलता होगा, कैसे हँसता होगा, कैसे रिश्ते निभाता होगा, कैसे उजाला देखता होगा, कैसे समय को पूछता ह...

पता नहीं


पता नहीं,
गरीब
इस मँहगाई के साथ
कैसे चलता होगा,
कैसे हँसता होगा,
कैसे रिश्ते निभाता होगा,
कैसे उजाला देखता होगा,
कैसे समय को पूछता होगा,
कितने आँसू बहाता होगा,
कितनी आह भरता होगा,
कितनी बार टूट कर
उठता होगा,
कब-कब भूख को सुलाता होगा,
पता नहीं,
गरीब
इस भ्रष्टाचार के साथ
कैसे मुस्कराता होगा ।
********


आन्दोलन

आन्दोलन
फिर उभरा
भ्रष्टाचार के विरूद्ध
राष्ट्र की जनता द्वारा
राष्ट्र के लिए
एक नारा
फिर गाया गया ।
गुम भारत
बाहर निकला,
एक गीत
मंच तक हो आया,
अवरोधों को हटाने,
राहों को खोलने,
एक आन्दोलन
फिर गुनगुनाने लगा ।
झंडे
भ्रष्टाचार के विरूद्ध
उठने लगे ।
------------

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

कविता: भारत की भाषा

कविता: भारत की भाषा: वह नहीं बोलता, भारत की भाषा कोटि-कोटि हृतंत्री लय एकतंत्रीय,अहं से लथपथ खड़े उसके जीवन खंडहर हृदय में कृमि, कंकण, काट रहे ज्योति जिह्...

कविता: भारत की भाषा

कविता: भारत की भाषा: वह नहीं बोलता, भारत की भाषा कोटि-कोटि हृतंत्री लय एकतंत्रीय,अहं से लथपथ खड़े उसके जीवन खंडहर हृदय में कृमि, कंकण, काट रहे ज्योति जिह्...

कविता: भारत की भाषा

कविता: भारत की भाषा: वह नहीं बोलता, भारत की भाषा कोटि-कोटि हृतंत्री लय एकतंत्रीय,अहं से लथपथ खड़े उसके जीवन खंडहर हृदय में कृमि, कंकण, काट रहे ज्योति जिह्...

भारत की भाषा


वह नहीं बोलता,
भारत की भाषा
कोटि-कोटि हृतंत्री लय
एकतंत्रीय,अहं से लथपथ
खड़े उसके जीवन खंडहर
हृदय में कृमि, कंकण,
काट रहे ज्योति जिह्वा
वह अकेला जनता ने पाला ।
उदारता कोटि-कोटि जन मन की
क्यों करती उसकी अहं तुष्टि ?
जब वह नहीं समझता,
भारत की भाषा
वह नहीं जानता
भारत की संस्कृति चिरंतन
शोषण के डंक मारता,
रख क्षुद्र आकांक्षा
जनमन से हटकर
वृथा अभिमान की सत्ता रख,
वह नहीं बोलता,
भारत की भाषा
माँ के हृदय में ममता
वह डंक मारता,
भारत माँ ने गरल ले लिया
भारत की जनता बोलेगी,
भारत की भाषा ।

*******

शनिवार, 20 अगस्त 2011

कविता: जनता

कविता: जनता: जनता ने बनाया जनता ही उतारेगी, लोकतंत्र के आँसुओं को जनता ही पोछेगी, सिंहासन की शुद्धता जनता ही पूछेगी, परिवर्तन की बातें भी जनता ही ...

कविता: जनता

कविता: जनता: जनता ने बनाया जनता ही उतारेगी, लोकतंत्र के आँसुओं को जनता ही पोछेगी, सिंहासन की शुद्धता जनता ही पूछेगी, परिवर्तन की बातें भी जनता ही ...

जनता

जनता ने बनाया
जनता ही उतारेगी,
लोकतंत्र के आँसुओं को
जनता ही पोछेगी,
सिंहासन की शुद्धता
जनता ही पूछेगी,
परिवर्तन की बातें भी
जनता ही करेगी,
क्रान्ति के बीजों को
जनता ही जगायेगी,
सूक्ष्म जो सत्य है
उसे जनता ही बचायेगी ,
आस्थायें अन्त में
जनता पर उतरेंगी ।
----