शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

भारत की भाषा


वह नहीं बोलता,
भारत की भाषा
कोटि-कोटि हृतंत्री लय
एकतंत्रीय,अहं से लथपथ
खड़े उसके जीवन खंडहर
हृदय में कृमि, कंकण,
काट रहे ज्योति जिह्वा
वह अकेला जनता ने पाला ।
उदारता कोटि-कोटि जन मन की
क्यों करती उसकी अहं तुष्टि ?
जब वह नहीं समझता,
भारत की भाषा
वह नहीं जानता
भारत की संस्कृति चिरंतन
शोषण के डंक मारता,
रख क्षुद्र आकांक्षा
जनमन से हटकर
वृथा अभिमान की सत्ता रख,
वह नहीं बोलता,
भारत की भाषा
माँ के हृदय में ममता
वह डंक मारता,
भारत माँ ने गरल ले लिया
भारत की जनता बोलेगी,
भारत की भाषा ।

*******

1 टिप्पणी: