शनिवार, 11 अप्रैल 2020

मैंने सोचा

मैंने सोचा
सूरज सत्य लेकर आयेगा
जगाने के लिये
और प्रकाश में नहा धो लूँगा।
हमने सोचा
नदी सत्य लेकर आयेगी
साफ जल के साथ
और तीर्थों पर डुबकी ले लेंगे।
हमने सोचा
पहाड़ सत्य लेकर आयेगा
कई कई बार हमारे लिये
ऊँचे शिखरों से।
हमने सोचा
आकाश सत्य लेकर आयेगा
असंख्य नक्षत्रों के साथ
और सतत उसे निहारते रहेंगे।
मैंने सोचा
प्यार सत्य लेकर आयेगा
अपने परायों  के संग
और कुछ अनमोल क्षण जी लेंगे।
मैंने सोचा
वृक्ष सत्य लेकर आयेगा
फल- फूलों से लदकर।
हमने सोचा
हवा सत्य लेकर आयेगी
तो जीवन शतायु हो लेगा।
फिर सोचा
 कुछ सत्य हम में भी होगा
सूरज सा, नदी सा, पहाड़ सा,
प्यार सा, हवा सा, आकाश सा
वृक्ष सा और मनुष्य सा।

*महेश रौतेला