गुरुवार, 31 जनवरी 2019

जीवन में कम से कम एक बार प्यार कीजिए

१.
जीवन में कम से कम एक बार प्यार कीजिए:

जीवन में कम से कम एक बार प्यार कीजिए,
ठंड हो या न हो, उजाला हो या न हो,
अनुभूतियां शिखर तक जाएं या नहीं,
रास्ता उबड़-खाबड़ हो या सरल,
हवायें सुल्टी बहें या उल्टी बहें,
पगडण्डियां पथरीली हों या कटीली,
कम से कम एकबार दिल को खोल दीजिए।

तुम्हारी बातें कोई सुने या न सुने,
तुम कहते रहो ," मैं प्यार करता हूँ।"
तुम बार-बार आओ और गुनगुना जाओ।

तुम कम से कम एक बार सोचो,
एक शाश्वत ध्वनि के बारे में जो कभी मरी नहीं,
एक अद्भुत लौ के बारे में जो कभी बुझी नहीं,
उस शान्ति के बारे में.जो कभी रोयी नहीं,
कम से कम एकबार प्यार को जी लीजिए।

यदि आप प्यार कर रहे हैं तो अनन्त हो रहे होते हैं,
कम से कम एक बार मन को फैलाओ डैनों की तरह,
बैठ जाओ प्यार की आँखों में चुपचाप,
सजा लो अपने को यादगार बनने के लिए,
सांसों को खुला छोड़ दो शान्त होने के लिए।

एकबार जंगली शेर की तरह दहाड़ लो केवल प्यार के लिए,
लिख दो किसी को पत्र,पत्रऔर पत्र,
नहीं भूलना लिखना पत्र पर पता और अन्दर प्रिय तुम्हारा,
लम्बी यात्राओं पर एकबार निकल लो केवल प्यार के लिए।

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२.
मेरा पता:

शुभ्र मन, शुभ्र तन, शुभ्र हिमालय मेरा पता,
शुभ्र गाँव, शुभ्र शहर,शुभ्र भारत मेरा पता,
शुभ्र मिट्टी, शुभ्र नदी, शुभ्र वृक्ष मेरा पता,
शुभ्र राह, शुभ्र जीवन, शुभ्र प्यार मेरा पता।

खो गया यहीं कहीं तो ढूंढ लेना मेरा पता,
साफ-साफ दिखे नहीं तो  माँग लेना पावन पता,
आत्मा के पार  पहुंचा शुभ्र द्वार ही मेरा पता,
शुभ्र गीत, शुभ्र संगीत, शुभ्र लय ही मेरा पता।

निकल कर जो बहा वही है मेरा पता,
दुख में जो मिटा नहीं वही है मेरा पता,
हँसते-रोते जो लिखा गया  वही है मेरा पता,
शुभ्र शब्द, शुभ्र नाम,शुभ्र काम मेरा पता।

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३.
कविताएं महकती रहेंगी:

कविताएं महकती रहेंगी,
पहाड़ी वृक्षों की तरह,
समुद्री जीवों की भाँति तैरती रहेंगी,
या चीते की तरह छलांग लगा सकती हैं,
पक्षियों की तरह उड़ने का प्रयास कर सकती हैं,
मनुष्य अच्छा रहेगा या बुरा रहेगा,
कविताएं लिखी जायेंगी।
दुनिया केवल प्यार से नहीं चलती है,
कर्म भी चाहिए उत्तम,
या कहें महाभारत सा कुछ बनता बिगड़ता है यहाँ,
हमारे अन्दर का मनुष्य जब तक मरा न हो,
कविता-कहानी महकती रहेंगी।

बांबियों से निकलता मनुष्य
गुफाओं से निकलता मनुष्य,
महलों से निकलता मनुष्य,
झोपड़ियों से निकलता मनुष्य,
सभी को महक कभी भी मिल सकती है।
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* महेश रौतेला