कविता
रविवार, 24 जुलाई 2011
कविता: कुछ कहूँगा तो
कविता: कुछ कहूँगा तो
: "कुछ कहूँगा तो कुछ हो जायेगा अत: चुप रहता हूँ, मौन में तीर्थ बना तुम्हें बुलाता हूँ । आदमी तहलका मचाता है, सारी अँगड़ाइयां यहीं ले ले..."
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