कविता
शनिवार, 27 अगस्त 2011
कविता: पता नहीं
कविता: पता नहीं
: पता नहीं, गरीब इस मँहगाई के साथ कैसे चलता होगा, कैसे हँसता होगा, कैसे रिश्ते निभाता होगा, कैसे उजाला देखता होगा, कैसे समय को पूछता ह...
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