मंगलवार, 14 जून 2011

ओ वसंत

                       ओ वसंत


                                     ओ वसंत
मैं फूल बन जाउँ
सुगंध के लिए ,
ओ आसमान
मैं नक्षत्र बन जाउँ
टिमटिमाने के लिए,
ओ शिशिर
मैं बर्फ बन जाउँ
दिन-रात चमकने का लिए,
ओ पृथ्वी
मैं राह बन जाउँ
शाश्वत चलने के लिए,
ओ समुद्न
मैं लहर बन जाउँ
थपेड़ों में बदलने के लिए ,
ओ हवा
मैं शुद्ध बन जाउँ
जीवन का लिए ,
ओ सत्य
मैं दिव्य बन जाउँ
शाश्वत होने के लिए ,
ओ स्नेह
मैं रूक जाउँ
साथ-साथ टहलने के लिए ।

................



यह भारत है
                            यह बिहू है
जो मुझे भाता है
सुबह सी अनुभूति दे
ब्रह्मपुत्र का आभास कराता है ।
ये झोड़े हैं
जो मुझे नचाते हैं
स्नेह सा स्पर्श दे
गंगा का ज्ञान दे जाते हैं ।
यह गरबा है
जो मुझ में सनसनाता है
अद्भुत लय दे
साबरमती तक ले आता है ।
यह भारत है
जो मुझे उज्जवल बनाता है
गंगा,यमुना,ब्रह्मपुत्र
नर्मदा,गोदावरी,कावेरी
सिन्धु,व्यास, रावी
सबका संगम मुझमें ढूढ़ंता है ।
......


           भवदीय
             महेश रौतेला
                                      फोन 09435718178
                 



8 टिप्‍पणियां:

  1. वर्तमान मैं मेरा फोन 09426614203 है. 09435718178 अब मेरा फोन न न्हीं है.

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  2. अनेकता में एकता ही भारत की सांझी संस्कृति की परिचायक है |छूती किन्तु महत्वपूर्ण सराहनीय रचना -- आदरणीय महेश जी -- सादर शुभकामनाये |

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