रविवार, 4 मार्च 2018

चलो, फिर

चलो, फिर विद्यालय चलें
कुछ तुम कहोगे, कुछ हम कहेंगे
कुछ ठंड अपने आप कहेगी।

चलो, फिर उन रास्तों पर चलें
कुछ तुम चलोगे, कुछ हम चलेंगे
कुछ बातों बातों में चल लेंगे।

चलो, फिर कक्षाओं में चलें
कुछ तुम पढ़ोगे, कुछ हम पढ़ेंगे
कुछ कक्षायें अपने आप कह देंगी।

चलो, फिर खेतों में चलें
कुछ किसान कहेगा, कुछ फसल कहेगी
कुछ मौसम अपने आप कहेगा।

चलो, फिर जोर से हँस लें
कुछ तुम हँसोगे, कुछ हम हँसेंगे
कुछ जिन्दगी अपने आप हँस लेगी।

चलो, आज देश के लिये चलें
कुछ तुम चलो, कुछ हम चलें
कुछ देश अपने आप चल लेगा।

सोमवार, 12 फ़रवरी 2018

उन दिनों प्यार करने को

उन दिनों प्यार करने को

उन दिनों प्यार करने को
और कुछ था भी नहीं
तुम्हारे सिवाय,
न सिरफिरा मौसम था
न बादलों की झुकी लट थीं
न  नदियों के घुमाव थे
न बर्फ से ढकी पहाड़ियां थीं,
सच कहूँ तो कुछ दिखता ही नहीं था।
इन दिनों कहने को
और कुछ है भी नहीं
एक ईश्वर है वह भी अकेला है।
**महेश रौतेला

मन से कितनी धूल उड़ी

मन से कितनी धूल उड़ी

मन से कितनी धूल उड़ी
वे कहते यह राजनीति है
कोहरा जैसा जहां लगा है
वे कहते यह कूटनीति है।

भूमि जहां-जहां बंजर है
वे कहते हैं सब सरकारी है
नारे जो जो उनके हैं
वे कहते हैं  पावन हैं।

मन से बहुत धूल उड़ी
वे कहते हैं राह साफ है
आसमान में धुंध लगी है
वे कहते हैं घन घिरे हैं ।
**महेश रौतेला