बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

गुफा

गुफा:
आज हिमालय की गुफा में बैठा हूँ, गुफा बहुत बड़ी है।अंदर अंधकार है, बाहर थोड़ा प्रकाश।गुफा के अंदर से बहुत आवाजें आ रही हैं।उस अंधकार में सभायें हो रही हैं, प्रजातंत्र की।सब आवाजें भारतीय लग रही हैं।भाषणों में सभी को बहुमत मिल रहा है।यहाँ अंग्रेजी में कोई भाषण नहीं कर रहा है।पता नहीं कहाँ और क्यों गायब है? बर्फ गिरने लगी है।गुफा का मुँह बंद होने को है।इतने में गुफा के ऊपर एक आदमी गा रहा है-" सारे जहां से अच्छा...।" सुनने में अच्छा लग रहा है।मैं गुफा के अन्दर जाता हूँ और पूछता हूँ ,"सारे जहां से अच्छा...।" किसी ने सुना है। हाँ में उत्तर नहीं मिलता है।मैं बिहोश हो जाता हूँ।होश में आने पर देखता हूँ कि लोगों से घिरा हूँ।वे ,"सारे जहां से अच्छा...।" का अर्थ पूछने लगे।मैंने कहा कि," जब राष्ट्र की अपनी भाषा, संस्कृति, शिक्षा और टेक्नोलॉजी हो। वह आत्मनिर्भर हो। लोग गरीब न हों, तो तब ,"सारे जहां से अच्छा...।" देश को बोला जाता है।
पास में दूसरी गुफा है वहाँ से आवाज आयी," कुछ तो बात है, कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।" उस गुफा में गुलामी दूर-दूर तक फैली थी।अपने स्वाभिमान को जगाने की कोशिश ये कर रहे थे।
तीसरी गुफा से आवाज आयी," कुछ तो बात है लोगों में, कि गुलामी मिटती नहीं।" मैं सोच में डूब गया।उस गुफा पर गया और पूछा भई, क्या बात है? अन्दर झांका तो गरीबी दिख रही थी।मैंने बोला कितने लोग यहाँ रहते हैं, वे बोले लगभग अस्सी करोड़ होगी।ठीक-ठीक पता नहीं। फिर बोले "रोजगार, उच्च शिक्षा और न्याय आदि हमारी भाषा में नहीं है, सब अंग्रेजी में होता है। हमारी गरीबी का सबसे बड़ा कारण यही है।"मैं बोला," यह अंग्रेजीनुमा अंधकार है।"
पीछे से एक आवाज आयी," कुछ तो बात है सरकारों में, कि गुलामी मिटती नहीं।"
***महेश रौतेला

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें