शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2017

मुझे वह धूप याद है।

मुझे वह धूप याद है
 जब मैं उसे देखता था,
वह मुझे देखती थी,
आँखों से अज्ञात सा कुछ निकल,
उफनती नदी सा बहता रहता था,
 न वह उसे पार कर पाती थी
न मैं लाघँ पाता था।
मुझे वे दिन याद हैं
जब वह हँसती थी,
मैं भी हँसता था,
उसे न वह समझती थी,
न मैं समझ पाता था।
मुझे वह मुलाकात याद है
जब हम मिले थे,
न उसने अपनी बात कही थी,
न मुझे अपनी बात का पता था।
 मुझे वह शाम याद है
जब सूरज अस्त हो रहा था,
न मुझे जाने की जल्दी थी,
न उसे विदा करने की याद।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें