रविवार, 25 अक्टूबर 2015

आज मैंने आकाश में देखा

आज मैंने आकाश में देखा कि चिड़िया उड़ी या नहीं, तारे टिमटिमाये या नहीं, सूरज निकला या नहीं, और गहरी सांस ली कि सब सामान्य है। फिर देश की तरफ मुड़ा टूटी हँसी के साथ, झंडा खड़ा था हवा से हिल रहा था, आदमी संघर्ष में पसीने से लथपथ अंगार बन चुका था, नारे लगा रहा था पता नहीं किस लिए, हर मुर्दाबाद और हर जिन्दाबाद में, साँसें उसकी ही लग रही थीं। जय जयकार किसी और की या देश की या आदर्श की या सुधार की? झंडा तो खड़ा था। **************

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