गुरुवार, 28 जुलाई 2011
जल-संतुलन
पीने के पानी की उपलब्धता 1 प्रतिशत से भी कम है । 2025 तक 48 देशों में 2.8 अरब मे अधिक लोग ,संसार की 35% अनुमानित जनसंख्या, पानी की कमी से जूझेगी । भारत की 14 मुख्य नदियां बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी हैं । वे 5 करोड़ घन मीटर गंदा पानी प्रति वर्ष समुद्र में फेंकती हैं । 19 शहरों में पानी की कमी है । पानी का प्रयोग सतत बढ़ रहा है । अभी संसार के 6 अरब लोग नदियों,झीलों और भूमिगत उपलब्ध पानी का 54 प्रतिशत प्रयोग करते हैं । संसार की 80 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या भूमिगत जल पर निर्भर करती है । भूमिगत जल पर बढ़ती आबादी, शहरीकरण, औद्योगिकरण और खाद्य सुरक्षा की माँग के कारण बहुत दबाव है । भूमिगत जल का अतिशय दोहन और प्राकृतिक रूप से उसकी भरपाई न होने के कारण इस स्रोत का उपयोग तकनीकी और आर्थिक रूप से सतत सम्भव नहीं होगा । संसार के किसानों द्वारा पम्पिंग से निकाले गये लगभग 160 अरब घन मीटर पानी की प्रतिवर्ष प्राकृतिक रूप से भरपाई नहीं होती है । इसलिए हमें प्रदूषण निवारण और भूमिगत दोहन से निकाले गये पानी की भरपाई करने का प्रयत्न करना चाहिए। इससे हम प्राकृतिक आपदाओं से भी बच पाएंगे ।
रविवार, 24 जुलाई 2011
कविता: कुछ कहूँगा तो
कविता: कुछ कहूँगा तो: "कुछ कहूँगा तो कुछ हो जायेगा अत: चुप रहता हूँ, मौन में तीर्थ बना तुम्हें बुलाता हूँ । आदमी तहलका मचाता है, सारी अँगड़ाइयां यहीं ले ले..."
कविता: कुछ कहूँगा तो
कविता: कुछ कहूँगा तो: "कुछ कहूँगा तो कुछ हो जायेगा अत: चुप रहता हूँ, मौन में तीर्थ बना तुम्हें बुलाता हूँ । आदमी तहलका मचाता है, सारी अँगड़ाइयां यहीं ले ले..."
कुछ कहूँगा तो
कुछ कहूँगा
तो कुछ हो जायेगा
अत: चुप रहता हूँ,
मौन में
तीर्थ बना
तुम्हें बुलाता हूँ ।
आदमी तहलका मचाता है,
सारी अँगड़ाइयां
यहीं ले लेता है ।
मैं हूँ कि
कुछ कहूँगा
और प्यार हो जायेगा,
हमारी आजादी से
एक गीत बन जायेगा ।
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तो कुछ हो जायेगा
अत: चुप रहता हूँ,
मौन में
तीर्थ बना
तुम्हें बुलाता हूँ ।
आदमी तहलका मचाता है,
सारी अँगड़ाइयां
यहीं ले लेता है ।
मैं हूँ कि
कुछ कहूँगा
और प्यार हो जायेगा,
हमारी आजादी से
एक गीत बन जायेगा ।
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मंगलवार, 12 जुलाई 2011
आदमी
आदमी कितना भी
दुखी हो
ईश्वर से दुश्मनी
नहीं कर पाता,
उसे जीवनपर्यन्त
पूजता,
अपनी भलाई की
शपथ ले,
अपने दुरावों को
इधर-उधर दौड़ाता है ।
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दुखी हो
ईश्वर से दुश्मनी
नहीं कर पाता,
उसे जीवनपर्यन्त
पूजता,
अपनी भलाई की
शपथ ले,
अपने दुरावों को
इधर-उधर दौड़ाता है ।
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बुधवार, 6 जुलाई 2011
कविता: हे कृष्ण
कविता: हे कृष्ण: "हे कृष्ण, कहाँ जाउँ, किसे कहूँ, दुविधाओं में, किस गीता को पढ़ूँ, किस गीत को गाऊँ, किस पाठ को दोहराऊँ, कर्म की शैली, कैसे बदलूँ, धर्..."
कविता: हे कृष्ण
कविता: हे कृष्ण: "हे कृष्ण, कहाँ जाउँ, किसे कहूँ, दुविधाओं में, किस गीता को पढ़ूँ, किस गीत को गाऊँ, किस पाठ को दोहराऊँ, कर्म की शैली, कैसे बदलूँ, धर्..."
हे कृष्ण
हे कृष्ण,
कहाँ जाउँ,
किसे कहूँ,
दुविधाओं में,
किस गीता को पढ़ूँ,
किस गीत को गाऊँ,
किस पाठ को दोहराऊँ,
कर्म की शैली,
कैसे बदलूँ,
धर्म संकट में,
किस कुरूक्षेत्र में जाऊँ ।
कहाँ जाउँ,
किसे कहूँ,
दुविधाओं में,
किस गीता को पढ़ूँ,
किस गीत को गाऊँ,
किस पाठ को दोहराऊँ,
कर्म की शैली,
कैसे बदलूँ,
धर्म संकट में,
किस कुरूक्षेत्र में जाऊँ ।
शुक्रवार, 1 जुलाई 2011
अभी लिखी नहीं गयी चिट्ठी
अभी लिखी नहीं गयी चिट्ठी
प्यार की,
कहा नहीं गया शब्द
मिठास का,
हुई नहीं बात
स्नेह की ।
अभी फूटे नहीं स्रोत
सत्य के ,
अभी सम्भावना है
प्यार की, मिठास की,
स्नेह की, सत्य की ।
** महेश रौतेला
प्यार की,
कहा नहीं गया शब्द
मिठास का,
हुई नहीं बात
स्नेह की ।
अभी फूटे नहीं स्रोत
सत्य के ,
अभी सम्भावना है
प्यार की, मिठास की,
स्नेह की, सत्य की ।
** महेश रौतेला
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