दवा:
बगीचे में घूम रहा था। तभी एक बुजुर्ग बेंच पर बैठे दिखे। मैं उनकी बगल की बेंच पर बैठ गया। परिचय होने लगा। उनकी उम्र तिरासी साल है। आँखों से साफ-साफ नहीं दिखायी देता है। वे जहाँ नौकरी करते थे,वह संस्थान उन्हें और उनकी पत्नी को मुफ्त मेडिकल सुविधाएं देता है। यही नियम भी है। शहर में संस्थान की तीन डिस्पेंसरी हैं। उनके सबसे नजदीक जो डिस्पेंसरी है वह उनके घर से आधा किलोमीटर दूर है। लेकिन उन्होंने बोला ," मैं पास वाली डिस्पेंसरी में नहीं जाता हूँ, दूर वाली में जाता हूँ, रिटायरमेंट के बाद से ही।" मैंने पूछा," आने-जाने में कितना लगता है?" वे बोले," 220 रुपये।" फिर बोले वहाँ भीड़ कम रहती है। शीघ्र नम्बर आ जाता है। मैंने कहा आजकल यहाँ भी भीड़ नहीं रहती है। वे बोले," वहाँ डाक्टर अच्छे हैं।" बेटे,बहू और पोते की भी दवा लिख देते हैं। यहाँ नहीं लिखते हैं। उन्होंने कहा है," किसी को बताना नहीं।" एक बार पोते का हाथ जला था, तब भी दवा लिख दिये थे। फिर मुस्कुरा कर बोले," कई बार कुत्ते की दवा भी लिखा लेता हूँ।" मैंने पूछा," आदमी और कुत्ते की दवा एक होती है क्या?" उसने कहा," हाँ, कैल्शियम वाली।"
*महेश रौतेला
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