सोचा न था
सोचा न था
इस वर्ष बर्फ गिरेगी
सरहद पर युद्ध होगा
रेल दुर्घटना होगी
नदी डूब जायेगी
संध्या खो जायेगी
सुबह थक जायेगी
लोग आपस में लड़ेंगे
दोस्तों का कत्ल होगा
मन बिखर जायेगा
धूप मुरझा जायेगी
वसंत रूठेगा
भाग्य फूट-फूट कर रोयेगा।
सोचा न था
इस वर्ष ग्रहण लगेगा
आतंक उठेगा
भूकम्प आयेगा
विश्वास डगमगा जायेगा
परिवार के परिवार खो जायेंगे।
हरियाली सूखेगी
विचार ठूंठ बनेंगे
संस्कृति रूठेगी
सूखा पड़ाव डालेगा
अंधकार बरबस लौटेगा
आत्मीयता लुप्त होगी।
मनुष्य के ऊपर
युद्ध मडरायेगा
बिल्ली रास्ता काट
अपशकुन का अंधविश्वास जगायेगी,
ऐसे में सोचा न था
संध्या होते होते
जीवन से प्यार हो जायेगा।
*महेश रौतेला
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