मेरे अल्फाज़
बातें कहाँ पूरी होती हैं
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बातें चलती रहती हैं,
बातें कहाँ पूरी होती हैं,
सूर्योदय से सूर्यास्त तक
शाम से सुबह तक
बातें कहाँ पूरी होती हैं?
कभी प्यार पर लटकती हैं
कभी आकाश में भटकती हैं,
कभी बचपन चुराती है
कभी यौवन दिखाती हैं
बातें कहाँ पूरी होती हैं?
आग भी तपाती हैं
सिर भी खपाती हैं,
नरम भी होती है
गरम भी दिखती हैं
बातें कहाँ पूरी होती हैं?
घर से निकलती हैं
बाहर कुछ चमकती हैं,
राज भी रखती हैं
महाभारत भी करती हैं
बातें कहाँ पूरी होती हैं?
दुआ बहुत दिलाती हैं
दुनिया बहुत घुमाती हैं,
दोस्त भी बनाती हैं
रिश्ते भी निभाती हैं
बातें कहाँ पूरी होती हैं?
बातें प्रचुर हँसाती हैं
बातें बहुत रूलाती हैं,
अन्त तक ले जाती हैं
निडर हमें बनाती हैं
बातें कहाँ पूरी होती हैं?
महेश रौतेला
बातें कहाँ पूरी होती हैं,
सूर्योदय से सूर्यास्त तक
शाम से सुबह तक
बातें कहाँ पूरी होती हैं?
कभी प्यार पर लटकती हैं
कभी आकाश में भटकती हैं,
कभी बचपन चुराती है
कभी यौवन दिखाती हैं
बातें कहाँ पूरी होती हैं?
आग भी तपाती हैं
सिर भी खपाती हैं,
नरम भी होती है
गरम भी दिखती हैं
बातें कहाँ पूरी होती हैं?
घर से निकलती हैं
बाहर कुछ चमकती हैं,
राज भी रखती हैं
महाभारत भी करती हैं
बातें कहाँ पूरी होती हैं?
दुआ बहुत दिलाती हैं
दुनिया बहुत घुमाती हैं,
दोस्त भी बनाती हैं
रिश्ते भी निभाती हैं
बातें कहाँ पूरी होती हैं?
बातें प्रचुर हँसाती हैं
बातें बहुत रूलाती हैं,
अन्त तक ले जाती हैं
निडर हमें बनाती हैं
बातें कहाँ पूरी होती हैं?
महेश रौतेला
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