सोमवार, 2 दिसंबर 2019

दवा


दवा:

बगीचे में घूम रहा था। तभी एक बुजुर्ग बेंच पर बैठे दिखे। मैं उनकी बगल की बेंच पर बैठ गया। परिचय होने लगा। उनकी उम्र  तिरासी साल है। आँखों से साफ-साफ नहीं दिखायी देता है। वे जहाँ नौकरी करते थे,वह संस्थान उन्हें और उनकी पत्नी को मुफ्त मेडिकल सुविधाएं देता है। यही नियम भी है। शहर में संस्थान की तीन डिस्पेंसरी हैं। उनके सबसे नजदीक जो डिस्पेंसरी है वह उनके घर से आधा किलोमीटर दूर है। लेकिन उन्होंने बोला ," मैं पास वाली डिस्पेंसरी में नहीं जाता हूँ, दूर वाली में जाता हूँ, रिटायरमेंट के बाद से ही।"  मैंने पूछा," आने-जाने में कितना लगता है?" वे बोले," 220 रुपये।"   फिर बोले वहाँ भीड़ कम रहती है। शीघ्र नम्बर आ जाता है। मैंने कहा आजकल यहाँ भी भीड़ नहीं रहती है। वे बोले," वहाँ डाक्टर अच्छे हैं।"  बेटे,बहू और पोते की भी दवा लिख देते हैं। यहाँ नहीं लिखते हैं। उन्होंने कहा है," किसी को बताना नहीं।" एक बार पोते का हाथ जला था, तब भी दवा लिख दिये थे। फिर मुस्कुरा कर बोले," कई बार कुत्ते की दवा भी लिखा लेता हूँ।" मैंने पूछा," आदमी और कुत्ते की दवा एक होती है क्या?"  उसने कहा," हाँ, कैल्शियम वाली।"

*महेश रौतेला

शुक्रवार, 15 नवंबर 2019

बातें कहाँ पूरी होती हैं


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मेरे अल्फाज़

बातें कहाँ पूरी होती हैं

Mahesh Rautela
17 कविताएं
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बातें चलती रहती हैं,
बातें कहाँ पूरी होती हैं,
सूर्योदय से सूर्यास्त तक
शाम से सुबह तक
बातें कहाँ पूरी होती हैं?

कभी प्यार पर लटकती हैं
कभी आकाश में भटकती हैं,
कभी बचपन चुराती है
कभी यौवन दिखाती हैं
बातें कहाँ पूरी होती हैं?

आग भी तपाती हैं
सिर भी खपाती हैं,
नरम भी होती है
गरम भी दिखती हैं
बातें कहाँ पूरी होती हैं?

घर से निकलती हैं
बाहर कुछ चमकती हैं,
राज भी रखती हैं
महाभारत भी करती हैं
बातें कहाँ पूरी होती हैं?

दुआ बहुत दिलाती हैं
दुनिया बहुत घुमाती हैं,
दोस्त भी बनाती हैं
रिश्ते भी निभाती हैं
बातें कहाँ पूरी होती हैं?

बातें प्रचुर हँसाती हैं
बातें बहुत रूलाती हैं,
अन्त तक ले जाती हैं
निडर हमें बनाती हैं
बातें कहाँ पूरी होती हैं?

महेश रौतेला