सोमवार, 23 नवंबर 2020

प्रिय महाविद्यालय

 प्रिय महाविद्यालय,

    वर्षों बाद तुम्हें चिट्ठी लिखने का मन हो रहा है। जो तुम्हारे सान्निध्य में आया तुमने अपने सामर्थ्य के अनुसार ज्ञान दिया।कई सफल रहे होंगे और कई सफल होने जा रहे होंगे। धुंध आयी और चली गयी। मैंने तुम्हारे बारे में छुटपुट कुछ लिखा होगा और अन्य सबने अपनी तरह। किसी को तुम्हारा सानिध्य सुन्दर लगा होगा, रोमांसभरा, रोमांचक, अद्भुत, अलौकिक। चार साल सापेक्षता का सिद्धांत लिए कब गुजर जाते हैं, पता ही नहीं लगता।आज भी लिखने में अच्छा लगता है-

"हथेली जो तुमने छूयी

निखरी हुई है,

दूसरे हाथ से छू

बार -बार जाँचता हूँ

कितने निकट हो तुम।"

एक ओर उच्च शैक्षणिक वातावरण दूसरी ओर छुट्टियों में गाँव जाने की अनुभूतियां।

तब गांवों में साक्षरता बहुत कम थी।सन छियतर की बात होगी।उसका पति दिल्ली में नौकरी करता था।वह गांव में रहती थी।पढ़ी लिखी नहीं थी।यदि थोड़ी बहुत होगी भी तो चिट्ठी लिखने में असमर्थ थी। लेकिन पति के घर आने पर अधिक किरशाण(कार्यकुशल) हो जाती थी।उसने एक दिन मुझसे कहा," एक चिट्ठी लिख दो, मेरी।" वह पत्र और कलम ले आयी। मैंने कलम और पत्र हाथ में लिये और पूछा क्या लिखूं। वह सोच में डूब गयी। फिर मैं बोला ,लिख दूँ," मेरे प्रेमी, प्राणनाथ।" यह सुनकर वह शरमा गयी।उसके गाल लाल हो गये।वह मुस्कुराते हुये बोली," हाँ, कुछ ऐसा ही लिख दो।" उन दिनों पति का नाम नहीं लिया जाता था।पता नहीं यह परंपरा कब शुरू हुई? अब तो नाम लेना आम बात है। फिर घर की सब बातें चिट्ठी में लिखता गया और गाँव की मोटी मोटी खबरें भी।जैसे बर्फ पिघल चुकी है। बच्चे ठीक हैं। नारंगी पक चुकी हैं।वे बातें भी जो जंगल, घास,जानवरों की होती हैं और जिन्दगी सी जुड़ी होती हैं। वह बताती गयी,मैं लिखता गया जैसे वेदव्यास जी बोलते रहे और गणेश जी लिखते रहे।अन्त में फिर पूछा लिख दूँ," तुम्हारी प्रियसी।" तो वह  फिर शरमा गयी। इस बार जब गाँव जाना हुआ तो उनके बारे में पूछताछ की। पता चला वह गंभीर रूप से बीमार है।चल फिर नहीं सकती है।बोल नहीं पाती है। इशारों में कुछ कहती है।मेरी आँखों में उसका खुशहाल अतीत जीवंत हो उठा। साथ में जीवन का वसंत और विवशता भी।

मेरे प्रिय महाविद्यालय

"हमारे जमाने  की लड़कियां 

बोलती  नहीं थीं, 

मन ही मन में 

सुनती,सुनाती थीं।

आज वे हमारी  तरह

बूढ़ी,बुजुर्ग हो गयी होंगी,

राजा-रानी की कहानियां 

किसी न किसी को बताती,

अपने जमाने के द्वार खोल

खिड़कियों से झांकती,

खोया कुछ खोजती

सदाबहार बनी यादों को

काटती-छांटती,

साड़ी की तरह लपेट लेती होंगी।

पगडंडियां जो सड़क बन चुकी,

नदियां जो सिकुड़ चुकी,

वन जो कट चुके, 

शहर जो  घने हो गये,

सबको पकड़ती,

हमारे जमाने  की लड़कियां 

किसी न किसी को बताती होंगी।

हमारे जमाने  की लड़कियां 

बोलती  नहीं थीं, 

मन ही मन में 

सुनती,सुनाती थीं।"

तुममें जब प्रवेश लिया तो पहली बार अंग्रेजी माध्यम की तरलवार गर्दन पर पड़ी। क्योंकि बारवीं तक विज्ञान हिन्दी में ही पढ़ा था। खैर,चक्रव्यूह में अभिमन्यु बन कर प्रवेश लगभग सभी को करना था। धृतराष्ट्र यदि शासक हो तो सातों महारथी अभिमन्यु को मार ही देंगे।चक्रव्यूह से बाहर निकल आया,कुछ साथियों के साथ। 

मेरे प्रिय महाविद्यालय, तुम्हारे बारे में सबके अपने-अपने अनुभव और अनुभूतियां हैं। जो मैंने इंटरनेट पर पढ़ी और गुनी हैं। बटरोही सर, स्मिता जी, मेवाड़ी जी और अपने सहपाठियों आदि के संस्मण मुझे जिज्ञासु बनाये रखते हैं तुम्हारे बारे में। मैं अपने अनुभव और अनुभूतियों को याद करता हूँ। भौतिक विज्ञान  प्रयोगशाला , रसायन विज्ञान प्रयोगशाला के बाहर हाड्रोजन सल्फाड की गन्ध। बहुत सी घटनाएं याद हैं और बहुत सी भूल गया हूँ। भूलचूक माफ करना। बी.एसी. में साथ पढ़े साथी जो फेसबुक से फिर मिल गये कहते हैं ," यार हम मल्लीताल से तल्लीताल साथ-साथ घूमने जाते थे।लेकिन मुझे याद नहीं आता है और मैं योंही "हाँ" बोल देता हूँ। अल्का होटल के आगे और नैना देवी मन्दिर के पास एक फिल्म की शूटिंग की याद है। एक बार कालेज से मल्लीताल जाते समय सेंटमेरी की लड़कियों ने मेरा रास्ता रोक दिया था, वे लगभग नौ-दस रही होंगी। मेरी छोटी बहिन की आयु की होंगी, सब। मेरे हाथ-पाँव फूल गये थे, तब। लगभग दो-तीन मिनट यह सब चला था फिर एक किनारे से जगह मिल गयी। वे खूब हँस रही थीं और मैं राहत महसूस कर रहा था। संख्या में बल होता है,ऐसा लगा। 

बी. एसी. से एम.एसी. में आते- आते बहुत परिवर्तन आ चुके थे। तब मैं रसायन विज्ञान परिषद का उपाध्यक्ष और अध्यक्ष रहा था। सांस्कृतिक कार्यक्रम जो ए. एन. सिंह हाँल में होते थे उसमें नाटक हमारी ओर से भी प्रस्तुत हुए थे। उस समय लड़कियां सामान्यतः नाटकों में अभिनय नहीं करती थीं। अतः लड़के ही लड़कियों का अभिनय करते थे। उस समय रामलीलाओं में भी यही प्रचलन था।लघंम छात्रावास में मेरा सहपाठी रहता था और मैं प्रायः उससे मिलने एस.आर.और के.पी. छात्रावासों के रास्ते जाया करता था। दोनों लड़कियों के छात्रावास हैं। तब मधुर कंठों से समधुर शब्द बाण सुनने को मिल जाते थे। जैसे "दिल दिया दर्द लिया" आदि। वैसे यह फिल्म का नाम है। १९७७ में एक आन्दोलन हुआ था तब मैंने भी कला संकाय के आगे भाषण दिया था। उसके कुछ दिन बाद हम दो साथी एस. आर. छात्रावास के सामने वाली पगडण्डी से गुजर रहे थे। लड़कियां छात्रावास के आगे बनी दीवाल(खोयी) पर बैठी थीं। जैसे ही हम ठीक उनके नीचे से जाती पगडण्डी से जा रहे थे तो सब बोल उठी," हमारे नये अध्यक्ष(प्रेजिडेंट) जा रहे हैं। आदि।" संख्या बल आनन्द भी देता है। 

प्रिय महाविद्यालय, जब फेसबुक आया तो पुराने सहपाठियों को ढूंढने का एक माध्यम मिल गया।  खुशी का एक रास्ता खुल गया। लेकिन अपवाद भी निकले। हमारी एक सहपाठी लड़की थी ,वह तब दुबली-पतली थी,जो सामान्यतः होता है उस उम्र में। उसने अपनी वर्तमान फोटो के साथ पृष्ठभूमि में पहले की फोटो लगायी थी। वर्तमान फोटो में वह पहिचान में नहीं आ रही थी। तो मैंने कुछ लिख दिया था तो उसे शायद लगा कि मैं उसे मोटी कह रहा हूँ! तो उसने अंग्रेजी में लिखकर मुझे पहिचानने में ढुलमुलपन की नीति दिखायी। सहपाठी लड़कियां जितनी मिली सब अंग्रेजी में ही उत्तर देती हैं,तो माहौल शुष्क हो जाता है। हम ही राष्ट्रवादी बने रहे , तब भी अब भी।मैं तो १९९९ में जब डलास( यूएसए) गया तब भी अपनी हिन्दी कविता जो "गुजरात वैभव" में छपी थी वहाँ हमारे मेजबान को दे आया।और हमने उन्हें उसका अंग्रेजी अनुवाद भी बताया। 

जब मैं अध्यक्ष था परिषद का तो एम.एसी. प्रथम वर्ष की लड़कियां(शायद चार थीं) हमें मिलने पर मुझे नमस्कार करती थीं।एक दिन उनको आता देख मेरा दोस्त बोला," मैं तेरी इज्जत मिट्टी में मिलाता हूँ, यदितुझे नमस्कार करेंगी तो।" एक प्रफुल्लित  मजाक का अपना आनन्द होता है। 

परिषद के सत्र उद्घाटन समारोह में खगोल शास्त्र(एस्ट्रोफिजिक्स) पर लेक्चर देने के लिए  बेधशाला से वरिष्ठ वैज्ञानिक महोदय को बुलाया गया था। उसमें एम.एसी. प्रथम वर्ष के एक छात्र ने एक गाना गाया था,बहुत सुन्दर। २०१८ में, व्हाट्सएप पर आये छ गानों में वह गाना भी था। जब मेरे संपर्क के तब के सहपाठियों  से मैंने उस गाने को पहिचानने की बात की तो लड़कों को वह याद था। 

मेरे प्रिय, जब भी तुम्हारी यादों का समुद्र छलछलाता है,मैं किनारे बैठ कर उनकी लहरों को देखता हूँ। बहुत बार दोहराव भी हो जाता है लेकिन मन में जिज्ञासा बनी रहती है। 


***महेश रौतेला

1 टिप्पणी:

  1. University of Perpetual Help System Dalta Top Medical College in Philippines
    University of Perpetual Help System Dalta (UPHSD), is a co-education Institution of higher learning located in Las Pinas City, Metro Manila, Philippines. founded in 1975 by Dr. (Brigadier) Antonio Tamayo, Dr. Daisy Tamayo, and Ernesto Crisostomo as Perpetual Help College of Rizal (PHCR). Las Pinas near Metro Manila is the main campus. It has nine campuses offering over 70 courses in 20 colleges.

    UV Gullas College of Medicine is one of Top Medical College in Philippines in Cebu city. International students have the opportunity to study medicine in the Philippines at an affordable cost and at world-class universities. The college has successful alumni who have achieved well in the fields of law, business, politics, academe, medicine, sports, and other endeavors. At the University of the Visayas, we prepare students for global competition.

    जवाब देंहटाएं