रूको,मैंने अभी प्यार नहीं किया
हिमालय से भेंट नहीं हुयी,
गंगा में स्नान नहीं किया
ऊँचे वृक्ष नहीं लगाये,
सुगंधित फूल के निकट नहीं गया
बड़ी गिनती पूरी नहीं की है,
शान्ति तक पहुँचा नहीं हूँ।
रूको,अभी मैंनेआकाश के
सहस्रों नक्षत्र नहीं देखे हैं,
सभी सुखों से साक्षात्कार नहीं हुआ है
दुखों का परिचय छूटा हुआ है,
बहुत से शब्दों से अनभिज्ञ हूँ
बड़ी-बड़ी युद्ध विभीषिकाओं को समझना शेष है।
रूको,मेरी उत्पत्ति अभी गूढ़ है
अभी मुझे मत ललकारो,
मैं वहाँ नहीं पहुँचा हूँ
जहाँ पहुँचना चाहिए,
अभी मेरे हाथ में हथियार हैं
जो चोट पहुँचा सकते हैं,
अभी रात शेष है
आदि जगमगती सुबह में देर है।
*महेश रौतेला
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