गुरुवार, 3 सितंबर 2020

मैं पिता बन जाऊँ

 मैं पिता बन जाऊँ

और थक कर घर आऊँ

तो तुम्हें एक कहानी सुनाऊँ।

राजा-रानी की नहीं

राजकुमार-राजकुमारी की नहीं,

मजदूर-मालिक की नहीं

गरीब-अमीर की नहीं,

बस, एक स्नेहिल पिता होने की।


मैं कहूँ और तुम सुनो,

तुम्हारे कान पकड़ दूँ

कि तुम सुन सको,

तुम्हारी आँखें खोल दूँ

कि तुम देख सको,

तुम्हारा मन पकड़ लूँ

कि तुम खेल सको,

बस,एक स्नेहिल पिता बन अशीषता रहूँ।


* महेश रौतेला